Geet naya gata hoon! - By Atal Bihari Vajpayee
गीत नही गाता हुँ |
बेनकाब चेहरे हैं , दाग बड़े गहरे हैं\ टूटता तिलिस्म,
आज सच से भय ख़ाता हूँ | गीत नही गाता हुँ |
लगी कुछ ऐसी नज़र, बिखरा शीशे सा शहर,
अपनो के मेले में मिट नही पता हूँ, गीत नही गाता हुँ |
पीठ में छुरी सा चाँद, राहु गया रेखा फाँद,
मुक्ता के क्षण में , बार बार बाँध जाता हूँ, गीत नही गाता हुँ |
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गीत नया गाता हूँ|
टूटे हुए तारों से , फूटे बसंती स्वर.
पत्थर की छाती में उग आया ना अंकुर,
झड़े सब पीले पात, कोयल की कुक रात,
प्राची में अरुणिमा की रेत देख पता हूँ, गीत नया गाता हूँ|
टूटे हुए सपने की सुने कौन सिसकी,
अंतः की चिर व्यथा, पलाको पर ठिठकी,
हार नही मानूगा, रार नही ठानुगा,
कल के कपाल पर लिखता, मिटाता हूँ|
गीत नया गाता हूँ|
By: Respected Atal Bihari Vajpayee
