Monday, 3 August 2020

Hawa hoon hawa main - हवा हूँ, हवा मैं

हवा हूँ, हवा मैं बसंती हवा हूँ! (Hawa Hoon Hawa main Basanti Hawa hoon)

हवा हूँ, हवा मैं
बसंती हवा हूँ।

सुनो बात मेरी -
अनोखी हवा हूँ।


बड़ी बावली हूँ 
बड़ी मस्तमौला।
नहीं कुछ फ़िकर है
बड़ी ही निडर हूँ 
जिधर चाहती हूँ
उधर घूमती हूँ
मुसाफिर अजब हूँ।

न घर-बार मेरा,
न उद्देश्य मेरा,
न इच्छा किसी की,
न आशा किसी की,
न प्रेमी न दुश्मन,
जिधर चाहती हूँ
उधर घूमती हूँ।

हवा हूँ, हवा मैं
बसंती हवा हूँ!

जहाँ से चली मैं
जहाँ को गई मैं -
शहर, गाँव, बस्ती,
नदी, रेत, निर्जन,
हरे खेत, पोखर,
झुलाती चली मैं।
झुमाती चली मैं!

हवा हूँ, हवा मै
बसंती हवा हूँ।

चढ़ी पेड़ महुआ,
थपाथप मचाया;
गिरी धम्म से फिर,
चढ़ी आम ऊपर,
उसे भी झकोरा,
किया कान में ‘कू’,
उतरकर भगी मैं,
हरे खेत पहुँची -
वहाँ, गेंहुँओं में
लहर खूब मारी।
पहर दो पहर क्या,
अनेकों पहर तक
इसी में रही मैं!
खड़ी देख अलसी
लिए शीश कलसी,
मुझे खूब सूझी -
हिलाया-झुलाया
गिरी पर न कलसी!
इसी हार को पा,
हिलाई न सरसों,
झुलाई न सरसों,

हवा हूँ, हवा मैं
बसंती हवा हूँ!

मुझे देखते ही
अरहरी लजाई,
मनाया-बनाया,
न मानी, न मानी;
उसे भी न छोड़ा -
पथिक आ रहा था,
उसी पर ढकेला;
हँसी ज़ोर से मैं,
हँसी सब दिशाएँ,
हँसे लहलहाते
हरे खेत सारे,
हँसी चमचमाती
भरी धूप प्यारी;
बसंती हवा में
हँसी सृष्टि सारी!

हवा हूँ, हवा मैं
बसंती हवा हूँ!
--केदारनाथ अग्रवाल

Friday, 2 January 2015

So sorry!

 बहुत दिनों से मन इस  पीड़ा से  गुजर रहा था लेकिन सोचा था कि कुछ नहीं लिखूंगा, डर भी था कहीं कट्टरवादी ही न करार कर दिया जाऊं । इन वामपंथियों ने शर्त ही ऐसी बना दी है।  एक तो हिन्दू (ये सबसे बड़ा पाप है), ऊपर से भाजपा समर्थक और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचारधारा से प्रेरणा लेने वाला। शर्त ऐसे और आज कल ट्रेंड ऐसी कि कौन अपने को पुराने ख़यालात(उनके शब्दों में) का दिखना चाहता है । हिंदी में भी इंग्लिश न घुसेड़ो तो गंवार कहलाने का डर और गलती से बिहारी टोन में बोल दिया तो…… ना बाबा ना इतनी बेइज़्ज़ती भी नहीं करवानी।  क्यों अपना साला दिमागवा ख़राब करना है, बुड़बक कहीं का। इसलिए मैंने कहीं कहीं इंग्लिश घुसेड़ा हूँ । बुरा न मानियेगा और मेरा दर्द समझियेगा ।  चलो जी जिक्र छिड़ा है तो ऐसे कुछ वामपंथी शब्दावलियों का जिक्र  कर देता, मन ही मन मारे शर्म से मरा जा रहा हूँ, इसीलिए तो  कूल डूड नहीं कहा जाता ना ।
१) अगर आप हिन्दू है तो आप कम्युनल है  या कम्मुनलिस्म को सपोर्ट करते हैं।
२) गलती से आप हिन्दू है और पूजा करते हैं (आज कल छोड़ दिया है इन लोगों के चक्कर में) तो आप पक्का अंधविश्वासी। 
३) गलती से आप हिन्दू है, पूजा करते हैं और टिका लगा लिया है और भगवा वस्त्र धारण कर लिया है तो पक्का आप आरएसएस, बजरंगदल वाले हैं । 
४) अगर आप हिंदू धर्म के विरोधी है और जम के गलियां देते हैं ( Doesn't matter how irrational you're), आप बृहत् सिद्धांतवादी और विकासन्नोमुख  सोच के लगते हैं । लगते क्या हैं , आप हैं । मुबारक हो । 
५) #PK का विरोध किया जहाँ पर  मेरी आस्था (पूजा करने क्यों कोई जाता है, आप साकार ब्रह्मा (मूर्तियों) की क्यों पूजा करते हैं (इन दोनों चीजों में कोई पाखंड पर चोट नहीं है जो #PK (पिए हुए लोग ) हमें बताने की कोशिश कर रहे हैं ) तो आप "खाखी चड्डी धरी संघी", बजरंगी या तो सागरिका घोष के शब्दों में इंटरनेट हिन्दू फ्रिंज ग्रुप के सदस्य हैं।
६) अगर आप दिवाली, होली या अपने पसंद के किसी भी हिन्दू त्यौहार मानते हैं तो आप घोर पाखंडी और वातावरण को प्रदूषित करने वाले ब्राह्मण  दिमाग(Brahminical mind) समर्थक हैं। हाँ अगर आप चर्च जाते हैं, गिटार बजाते हैं तो आप क्रिसमस, New year पर पटाखे चला सकते हैं वो कभी भी प्रदुषण नहीं फैलता हैं। हें काहें कन्फुजिआ रहे हैं। ये बात शाश्वत सत्य है । केवल दिवाली के दिन ही पटाखे छोड़ने से ही प्रदुषण फैलता है। और इस खतरनाक प्रदूषण के बारे में फुल एयर कंडिशन्ड ऑफिस में बैठने वाले ही बताते हैं ताकि आप ग्रीन हाउस के बारे में झुँझलायें। बुड़बक कही के ।

७) गलती से हिन्दू पर्वों पर मुबारकबाद दे दिए तो आप विश्व हिन्दू परिषद के फ्रिंज एलिमेंट हैं। होना है तो DMK, (Tamilian Dravidian Party), करूणानिधि वाली पार्टी की तरह नास्तिकता में विश्वास रखिये जो केवल क्रिसमस और दूसरे धर्म के पर्वो में गायब हो जाते हैं, मुबारकबाद भी हो जाता है। हाँ गणेश चतुर्थी के मुबारकबाद पर नास्तिकता बिलबिला के बाहर आता हैं । होना भी चाहिए, नास्तिक जो ठहरे और हमें अटल जी के शब्दों में "मैं उनकी तरह नास्तिक नहीं हूँ लेकिन जो उनकी नास्तिकता में भी आस्तिकता का सम्मान करना चाहिए"

7) अगर आप एम एफ हुसैन की पेंटिंग्स का विरोध करते हैं तो आपके जैसा जाहिल, बददिमाग और छोटी सोच का आदमी नहीं देखा। आखिर आपकी क्लास क्या है? आपको न तो कला की "क" और न आर्ट्स का "अ" आता है । हाँ सलमान रुश्दी, तस्लीमा नसरीन, दा विंन्सी कोड के लेखक और डैनिश कार्टूनिस्ट जैसे बददिमाग जाहिल और अनपढ़ लोगो का विरोध तो होना ही चाहिए जो कला के नाम पर किसी के धार्मिक भावनाओ को भड़काते  हैं। उनकी हिमाकत तो देखिये, लिखने के बाद भी जिन्दा है। आखिर मणि शंकर अय्यर जैसे खाँटी नास्तिक ने मान लिया है कि वो किसी खास धर्म के खिलाफ है। वैसे भी मणि शंकर अय्यर के बारे में बता दें कि खाँटी नास्तिक होने के बाद भी केवल राहुल गांधी को ही देख कर, उनको राजीव गांधी के पुनर्जन्म पर विश्वास होता है । क्या करें नास्तिकता भी कण्डिशनल हो सकती हैं?

८) #PK को टैक्सफ्री कर दिया तो सेक्युलर सरकार (उत्तर प्रदेश और बिहार अभी तक  )  है। हाँ विश्वरूपम पर बैन लगाने वाले सेक्युलर सरकारें। भाई वाह। मजा आ गय। इतना ज्ञान।

मैं अब तो डर सा गया हूँ, ये ऊपर लिखे सारे काम करता हूँ। हे भगवान, कौन से केटेगरी में मैं आता हूँ? चलें बाकी बातो की चिंता किये बिना, असली मुद्दे  पर आते हैं । मुद्दा भटक न जाये। मुझे इस डर से ही #PK का विरोध नहीं करना।  चलो जी नहीं करनी तो नहीं करनी लेकिन एक हमारे मित्र ( Intellectual, progressive, forward looking, secular and many such more words as  he subscribe all  ideology that believes in bashing all practice of Hinduism and support anything against Hinduism by all means) ने सवाल ही दाग दिया कि जो लोग (उनके शब्दों में आरएसएस  वाले लोग) #PK का विरोध कर रहे वो #OMG का विरोध नहीं किये थे? परेश रावल से सवाल नहीं किये थे? बात तो सही कही है भाई ने। एक दम खरा खरा। कोई है जवाब? बड़े आये तो मुंह उठा कर #PK (Such a nice movie)। और तो और परेश रावल आज कल भाजपा के कोटे के लोकसभा के सदस्य भी चुने गए हैं । घोर अपराध। महा घोर अपराध। इन संघियों (अपने को मिला लेता हूँ) ने विरोध भी नहीं किया|

मैं आपके सोच को दाद देता हूँ क्यूंकि आपकी समझ में  हिन्दू धर्म इन भाजपाई ,संघी, बजरंगियों की बपौती जो ठहरी । आप तो सेकुलर ठहरे। आपका विरोध करना तो आपेक्षित भी नहीं । कम्युनल वाला दाग जो लग जाएगा । बच के रहिएगा । मेरे ऊपर जो लगा आज तक धो नहीं पाया,शायद  केले के रस के साथ मिला हुआ था? इन खुरपातियों को तो जेल में होना चाहिए था । देखते हैं कब मेरे इन मित्रो की बात सुन सेक्युलर सरकार जेल में डालती है ।
और आप कम्युनल लोग इस मुगालते में मत रहिएगा की मैं कोई क्रान्तिकारी हो गया हूँ? ना बिल्कुल ही नहीं , मैंने तो ये सब लिखने की हिम्मत इसलिए की है क्योकि मेरे कलम के पीछे की पहचान इंटरनेट पर आसानी से छिप जाएगी और मैं  दिल की बातें भी सब के सामने आसानी से रख दूंगा। आमने सामने बात होगी तो मैं cool dude ही नजर आऊंगा । समझ गए न? चलिए कम बोलना, ज्यादा समझना, You uneducated, non class, orthodox Hindus. Sorry Khakhi chaddi Sanghis :-)

Tuesday, 17 June 2014

Geet naya gata hoon! - By Atal Bihari Vajpayee


गीत नही गाता हुँ |
बेनकाब चेहरे हैं , दाग बड़े गहरे हैं\ टूटता तिलिस्म,
आज सच से भय ख़ाता हूँ | गीत नही गाता हुँ |
लगी कुछ ऐसी नज़र, बिखरा शीशे सा शहर,
अपनो के मेले में मिट नही पता हूँ, गीत नही गाता हुँ |
पीठ में छुरी सा चाँद, राहु गया रेखा फाँद,
मुक्ता के क्षण में , बार बार बाँध जाता हूँ, गीत नही गाता हुँ |
..........
गीत नया गाता हूँ|
टूटे हुए तारों से , फूटे बसंती स्वर.
पत्थर की छाती में उग आया ना अंकुर,
झड़े सब पीले पात, कोयल की कुक रात,
प्राची में अरुणिमा की रेत देख पता हूँ, गीत नया गाता हूँ|
टूटे हुए सपने की सुने कौन सिसकी,
अंतः की चिर व्यथा, पलाको पर ठिठकी,
हार नही मानूगा, रार नही ठानुगा,
कल के कपाल पर लिखता, मिटाता हूँ|
गीत नया गाता हूँ|
By: Respected Atal Bihari Vajpayee

Geet naya gata hoon- Atal Bihari Vajpayee


गीत नही गाता हुँ |
बेनकाब चेहरे हैं , दाग बड़े गहरे हैं\ टूटता तिलिस्म,
आज सच से भय ख़ाता हूँ | गीत नही गाता हुँ |
लगी कुछ ऐसी नज़र, बिखरा शीशे सा शहर,
अपनो के मेले में मिट नही पता हूँ, गीत नही गाता हुँ |
पीठ में छुरी सा चाँद, राहु गया रेखा फाँद,
मुक्ता के क्षण में , बार बार बाँध जाता हूँ, गीत नही गाता हुँ |
..........
गीत नया गाता हूँ|
टूटे हुए तारों से , फूटे बसंती स्वर.
पत्थर की छाती में उग आया ना अंकुर,
झड़े सब पीले पात, कोयल की कुक रात,
प्राची में अरुणिमा की रेत देख पता हूँ, गीत नया गाता हूँ|
टूटे हुए सपने की सुने कौन सिसकी,
अंतः की चिर व्यथा, पलाको पर ठिठकी,
हार नही मानूगा, रार नही ठानुगा,
कल के कपाल पर लिखता, मिटाता हूँ|
गीत नया गाता हूँ|
By: Respected Atal Bihari Vajpayee

Badal ko ghirte dekha hai... By Nagarjun

अमल धवल गिरि के शिखरों पर,
बादल को घिरते देखा है।

छोटे-छोटे मोती जैसे
उसके शीतल तुहिन कणों को,
मानसरोवर के उन स्वर्णिम
कमलों पर गिरते देखा है,
बादल को घिरते देखा है।

तुंग हिमालय के कंधों पर
छोटी बड़ी कई झीलें हैं,
उनके श्यामल नील सलिल में
समतल देशों ले आ-आकर
पावस की उमस से आकुल
तिक्त-मधुर बिसतंतु खोजते
हंसों को तिरते देखा है।
बादल को घिरते देखा है।

ऋतु वसंत का सुप्रभात था
मंद-मंद था अनिल बह रहा
बालारुण की मृदु किरणें थीं
अगल-बगल स्वर्णाभ शिखर थे
एक-दूसरे से विरहित हो
अलग-अलग रहकर ही जिनको
सारी रात बितानी होती,
निशा-काल से चिर-अभिशापित
बेबस उस चकवा-चकई का
बंद हुआ क्रंदन, फिर उनमें
उस महान् सरवर के तीरे
शैवालों की हरी दरी पर
प्रणय-कलह छिड़ते देखा है।
बादल को घिरते देखा है।

दुर्गम बर्फानी घाटी में
शत-सहस्र फुट ऊँचाई पर
अलख नाभि से उठने वाले
निज के ही उन्मादक परिमल-
के पीछे धावित हो-होकर
तरल-तरुण कस्तूरी मृग को
अपने पर चिढ़ते देखा है,
बादल को घिरते देखा है।
कहाँ गय धनपति कुबेर वह
कहाँ गई उसकी वह अलका
नहीं ठिकाना कालिदास के
व्योम-प्रवाही गंगाजल का,
ढूँढ़ा बहुत किन्तु लगा क्या
मेघदूत का पता कहीं पर,
कौन बताए वह छायामय
बरस पड़ा होगा न यहीं पर,
जाने दो वह कवि-कल्पित था,
मैंने तो भीषण जाड़ों में
नभ-चुंबी कैलाश शीर्ष पर,
महामेघ को झंझानिल से
गरज-गरज भिड़ते देखा है,
बादल को घिरते देखा है।

शत-शत निर्झर-निर्झरणी कल
मुखरित देवदारु कनन में,
शोणित धवल भोज पत्रों से
छाई हुई कुटी के भीतर,
रंग-बिरंगे और सुगंधित
फूलों की कुंतल को साजे,
इंद्रनील की माला डाले
शंख-सरीखे सुघड़ गलों में,
कानों में कुवलय लटकाए,
शतदल लाल कमल वेणी में,
रजत-रचित मणि खचित कलामय
पान पात्र द्राक्षासव पूरित
रखे सामने अपने-अपने
लोहित चंदन की त्रिपटी पर,
नरम निदाग बाल कस्तूरी
मृगछालों पर पलथी मारे
मदिरारुण आखों वाले उन
उन्मद किन्नर-किन्नरियों की
मृदुल मनोरम अँगुलियों को
वंशी पर फिरते देखा है।
बादल को घिरते देखा है।

Hawa hoon hawa main, Basanti Hawa hoon....

हवा हूँ, हवा मैं
बसंती हवा हूँ।
सुनो बात मेरी -
अनोखी हवा हूँ।

न घर-बार मेरा,
न उद्देश्य मेरा,
न इच्छा किसी की,
न आशा किसी की,
न प्रेमी न दुश्मन,
जिधर चाहती हूँ
उधर घूमती हूँ।
हवा हूँ, हवा मैं
बसंती हवा हूँ!
जहाँ से चली मैं
जहाँ को गई मैं -
शहर, गाँव, बस्ती,
नदी, रेत, निर्जन,
हरे खेत, पोखर,
झुलाती चली मैं।
झुमाती चली मैं!
हवा हूँ, हवा मै
बसंती हवा हूँ।
चढ़ी पेड़ महुआ,
थपाथप मचाया;
गिरी धम्म से फिर,
चढ़ी आम ऊपर,
उसे भी झकोरा,
किया कान में ‘कू’,
उतरकर भगी मैं,
हरे खेत पहुँची -
वहाँ, गेंहुँओं में
लहर खूब मारी।
पहर दो पहर क्या,
अनेकों पहर तक
इसी में रही मैं!
खड़ी देख अलसी
लिए शीश कलसी,
मुझे खूब सूझी -
हिलाया-झुलाया
गिरी पर न कलसी!
इसी हार को पा,
हिलाई न सरसों,
झुलाई न सरसों,
हवा हूँ, हवा मैं
बसंती हवा हूँ!
मुझे देखते ही
अरहरी लजाई,
मनाया-बनाया,
न मानी, न मानी;
उसे भी न छोड़ा -
पथिक आ रहा था,
उसी पर ढकेला;
हँसी ज़ोर से मैं,
हँसी सब दिशाएँ,
हँसे लहलहाते
हरे खेत सारे,
हँसी चमचमाती
भरी धूप प्यारी;
बसंती हवा में
हँसी सृष्टि सारी!
हवा हूँ, हवा मैं
बसंती हवा हूँ!
--केदारनाथ अग्रवाल